यह जो २४ घंटे मैंने घर पे बिताए
माँ का आँगन, सुबह की चाय
एक प्यारी सी नींद और
चुपके से दो चार आसूँ भी बहाए
माँ के कुछ परदे खूँटी पर लगाए
कुछ देर टी॰वी॰ देखा
कुछ ख़रीदारी की और गोभी के पराँठे दबाए
और दोपहर में ख़ूब सारी बातें की और फिर नींद के ठोंके लगाए
कुछ तस्वीरें दिखाई और तारा के बड़े सारे क़िस्से सुनाये
माँ की तबियत का हाल पूछा
और बस इतने में ही २४ घण्टे ख़त्म होने को आयें
और फिर चल दी समेट कर माँ की प्यारी दुआएँ
Very nice
LikeLiked by 1 person