धुआँ उठा है तो कहीं आग भी लगी होगी
खुली किताब हूँ पर शायद कोई चाह कहीं दबी होगी
जिया है अब तक मुट्ठी में बांधें बड़ी सारी बड़ी प्यारी यादें
खुले आसमान में, इन परिंदों की तरह,
एक उड़ान कभी मैंने भी भरी होगी
धुआँ उठा है तो कहीं आग भी लगी होगी
खुली किताब हूँ पर शायद कोई चाह कहीं दबी होगी
जिया है अब तक मुट्ठी में बांधें बड़ी सारी बड़ी प्यारी यादें
खुले आसमान में, इन परिंदों की तरह,
एक उड़ान कभी मैंने भी भरी होगी