यह घड़ियों की आवाज़ कुछ ऐसे गूँजती है जैसे
हर पल को एक नाम देने की कोशिश कर रहा है कोई
क्यूँ बाँटा है समय को इन छोटे छोटे हिस्सों में ?
ऐसा लगता है हर साँस का क़र्ज़ उतारता है कोई।
यह घड़ियों की आवाज़ कुछ ऐसे गूँजती है जैसे
हर पल को एक नाम देने की कोशिश कर रहा है कोई
क्यूँ बाँटा है समय को इन छोटे छोटे हिस्सों में ?
ऐसा लगता है हर साँस का क़र्ज़ उतारता है कोई।