यह बारिश क्यूँ अंजानी लगती है
कम गीली, कम दीवानी लगती है
एक झूठी सी कहानी लगती है
भीगा देती है , मिटा देती है
दिल में हलचल सी भी मचा देती है
यादें बीती हुई बारिशों की दिला देती है
आसमान को समुन्दर में डूबा देती है
बादलों में इस शहर को गुमा देती है
ठहरी सी इस ज़िन्दगी का झूठा सा बयान देती है
यह मन भी आवारा है
अनजाने देस में, अनजाने लोगों के बीच
ढूंढ़ता रहता है , वोह सच्ची सी बारिश
इस मिटटी में खुश्बू कहाँ है?
घरों में ख़ुशी के कहकहें कहाँ हैं?
आँखों में शैतानी, बातों में नादानी कहाँ है?
यादें धुँधली हैं लेकिन वोह बारिश नहीं भूलती
रास्ता नया है, लेकिन वोह गलियां नहीं भूलती
शायद तभी –
यह बारिश कुछ अंजानी लगती है
कम गीली, कम दीवानी लगती है
एक झूठी सी कहानी लगती है
arrey wah…hindi kavita…mazaa aa gaya!
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